उत्तराषाढा
*हमेशा आनंद में रहने का चमत्कारी मंत्र* 1.संसार की सभी वस्तुएं स्वभाव से ही विनाशी है,एक न एक दिन मटियामेट होजाने वाली है;और वे स्वरूपसे ही सारहीन और सत्ताहीन हैं। 2.भगवान अखंडआनंदस्वरूप और शरणागतो के आत्मा हैं। जो लोग इस बात को समझ सकते हैं वे हमेशा आनंद में रहते हैं। ŚB 10.87.34 स्वजनसुतात्मदारधनधामधरासुरथै- स्त्वयि सति किं नृणां श्रयत आत्मनि सर्वरसे । इति सदजानतां मिथुनतो रतये चरतां सुखयति को न्विह स्वविहते स्वनिरस्तभगे ॥ ३४ ॥ To those persons who take shelter of You, You reveal Yourself as the Supersoul, the embodiment of all transcendental pleasure. What further use have such devotees for their servants, children or bodies, their wives, money or houses, their land, good health or conveyances? And for those who fail to appreciate the truth about You and go on pursuing the pleasures of sex, what could there be in this entire world — a place inherently doomed to destruction and devoid of significance — that could give them real happiness?